शब-ए-बारात मुस्लिम समाज के प्रमुख त्योहारों में से एक है। त्योहार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होता है और 15 तारीख की रात तक जारी रहता है। मुस्लिम धर्म में माना जाता है कि अगर इस रात सच्चे दिल से अल्लाह की इबादत की जाए और गुनाहों से तौबा की जाए तो अल्लाह उसकी इबादत कबूल करता है और उसके सारे गुनाह माफ कर देता है। इस साल शब-ए-बरात का पर्व 28 से 29 मार्च तक मनाया जाएगा।
क्या है शब-ए-बरात
शब-ए-बारात त्योहार मुसलमानों के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। यह त्योहार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होता है और 15 तारीख की रात तक मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर इस रात सच्चे दिल से अल्लाह की इबादत की जाए और अपने गुनाहों से तौबा की जाए तो अल्लाह इंसान को हर गुनाह से बरी कर देता है। इस बार यह पर्व 28 मार्च से 29 मार्च तक मनाया जाएगा। कई जगहों पर इस दिन संसार से विदा हुए पितरों की कब्रों पर जाकर उनके पक्ष में प्रार्थना की जाती है। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार इस रात में तमाम तरह के फैसले लिए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन अल्लाह अपने बंदियों के कामों को रिकॉर्ड करता है और कई लोगों को नर्क से मुक्त भी करता है। इसी वजह से मुस्लिम लोग इस त्योहार के दिन पूरी रात जागकर अल्लाह की इबादत करते हैं. इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार अगर आप इस रात सच्चे दिल से अल्लाह की इबादत करते हुए अपने गुनाहों से तौबा कर लेते हैं तो अल्लाह इंसान के सारे गुनाह माफ कर देता है।
कैसे मनाया जाता है शब-ए-बरात
इस दिन गरीबों में मदद बांटने की परंपरा है। इस दिन मुस्लिम लोग पूजा के लिए मस्जिदों और कब्रिस्तानों में जाते हैं। इसके साथ ही घरों को सजाया जाता है और लोग पूजा-पाठ में अपना समय व्यतीत करते हैं. इस दिन लोग नमाज अदा करने के साथ-साथ पिछले वर्ष में किए गए अपने पापों के लिए अल्लाह से प्रार्थना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन अल्लाह कई आत्माओं को नरक से मुक्त करता है। इसके साथ ही इस दिन लोगों को हलवा खाने की भी परंपरा है।
इसके पीछे क्या हैं मान्यताएं
जिसके पीछे यह मान्यता है कि इस दिन उहुद के युद्ध में मुहम्मद का एक दांत टूट गया था। जिस कारण उन्होंने इस दिन हलवा खाया था, यही कारण है कि इस दिन हलवा खाना सुन्नत माना जाता है। ऐसा सुन्नी संप्रदाय के लोग मानते हैं। वहीं, शिया संप्रदाय के लोगों का मानना है कि इसी दिन अंतिम शिया इमाम मुहम्मद अल-महिदी का जन्म हुआ था। जिसके कारण यह शिया संप्रदाय के लोगों के लिए उत्सव का दिन माना जाता है।