हिंदू धर्म की 12 जानकारियां, जो सभी हिंदुओं को पता होनी चाहिए?

हिन्दू धर्म के संबंध में संभवत: बहुत कम हिन्दू जानते होंगे। ज्यादातर हिन्दुओं को व्रत, त्योहार, परंपरा आदि की ही जानकारी होती है। ऐसे में हर हिन्दू को हिन्दू धर्म के संबंध में सामान्य जानकारी पता होना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार का कोई भ्रम ना रहे।

1.

हिन्दू धर्म का एकमात्र धर्मग्रंथ वेद है। वेद के चार भाग है ऋग, यजु, साम और अथर्व। वेद के ही तत्वज्ञान को उपनिषद कहते हैं जो लगभग 108 हैं। वेद के अंग को वेदांग कहते हैं जो छह हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त।

2.

मनु आदि की स्मृतियां, 18 पुराण, रामायण, महाभारत या अन्य किसी भी ऋषि के नाम के सूत्रग्रंथ धर्मग्रंथ नहीं हैं। वेद, उपनिषद का सार या कहें कि निचोड़ गीता में हैं इसीलिए गीता को भी धर्मग्रंथ की श्रेणी में रखा गया है जो महाभारत का एक हिस्सा है।

3.वेदों के अनुसार ईश्‍वर एक ही है उसका नाम ब्रह्म (ब्रह्मा नहीं) है। उसे ही परमेश्वर, परमात्मा, परमपिता, परब्रह्म आदि कहते हैं। वह निराकार, निर्विकार, अजन्मा, अप्रकट, अव्यक्त, आदि और अनंत है। सभी देवी-देवता, पितृ, ऋषि-मुनि, भगवान आदि उसी का ध्यान और प्रार्थना करते हैं।

4.विद्वानों के अनुसार लगभग 90 हजार वर्षों ने हिन्दू धर्म निरंतर है। नाम बदला, रूप बदला, परंपराएं बदली, लेकिन ज्ञान नहीं बदला, देव नहीं बदले और ना ही तीर्थ। हमारे पास इस बात के सबूत हैं कि 8 हजार ईसा पूर्व सिंधु घाटी के लोग हिन्दू ही थे। दृविड़ और आर्य एक ही थे।



5.हिन्दू धर्म में संध्यावंदन और ध्यान का बहुत महत्व है। कुछ लोग संध्यावंदन के समय पूजा-आरती, भजन-कीर्तन, प्रार्थना, यज्ञ या ध्यान करते हैं। लेकिन संध्यावंदन इन सभी से अलग होती है। संध्यवंदन आठ प्रहर की होती है जिसमें दो प्रहर सभी के लिए हैं- सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से संध्यावंदन की जाती है।

6.हिन्दू धर्म जीवन जीने की एक शैली है। योग, आयुर्वेद और व्रत के नियम को अपनाकर आप हमेशा सेहतमंद बने रहकर खुश रह सकते हैं। इसमें भोजन, पानी, निद्रा, ध्यान, कर्म, मन, बुद्धि और विचार के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी है जिसे आज विज्ञान भी मानता है। इसे पढ़ना चाहिए।


7.वेदानुसार यज्ञ पांच प्रकार के होते हैं-1. ब्रह्मयज्ञ, 2. देवयज्ञ, 3. पितृयज्ञ, 4. वैश्वदेव यज्ञ, 5. अतिथि यज्ञ। ब्रह्मयज्ञ का अर्थ संध्यावंदन, स्वाध्याय तथा वेदपाठ करना। देवयज्ञ अर्थात सत्संग तथा अग्निहोत्र कर्म करना। पितृयज्ञ अर्थात पूर्वज, आचार्य और माता-पिता में श्रद्धा रखते हुए श्राद्ध कर्म करना। वैश्वदेवयज्ञ अर्थात अग्नि, पशु और पक्षी को अन्य जल देना। अंत में अतिथि यज्ञ अर्थात अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा करना।

8.हिन्दुओं के 10 कर्तव्य और कर्म हैं- संध्योपासन, तीर्थ, पाठ, दान, यज्ञ, व्रत, संस्कार, उत्सव (पर्व-त्योहार जयंती), सेवा और श्राद्ध। इसके अलावा चार पुरुषार्थ है- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। यह चारों चार आश्रम पर आधारित हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास।

9.हिन्दू धर्म अनुसार जीवन का लक्ष्य मोक्ष होता है। मोक्ष का अर्थ होता है ज्ञान को उपलब्ध होना, आत्मज्ञान प्राप्त करना या खुद को उस अवस्था में ले आना जहां जन्म और मृत्यु से परे रहकर इच्छा अनुसार जन्म लेना और मरना।

10.हिन्दू धर्म मानता है कि सृष्टि की उत्पत्ति हुई है किसी ने की नहीं है और यह कार्य कोई छह दिन में नहीं हुआ है। इसके लिए अरबों वर्ष लगे हैं। यह मानिए कि परमात्मा या आत्मा ही प्रारंभ में थे। उन्हीं से महत्, महत् से अंधकार, अंधकार से आकाश, आकाश से वायु, आयु से अग्नि, अग्नि से जल, और जल से पृथ्वी (अन्य सभी ग्रह) की उत्पत्ति हुई है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार यह प्रकृति के आठ तत्व हैं।

11.हिन्दू धर्म पहले संपूर्ण धरती पर व्याप्त था। पहले धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बूद्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है। राजा प्रियव्रत संपूर्ण धरती के और राजा अग्नीन्ध्र सिर्फ जम्बूद्वीप के राजा थे। जम्बूद्वीप में नौ खंड हैं- इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। इसमें से भारतखंड को भारत वर्ष कहा जाता था। भारतवर्ष के 9 खंड हैं- इसमें इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है। भारतवर्ष के इतिहास को ही हिन्दू धर्म का इतिहास नहीं समझना चाहिए।

12. ईस्वी सदी की शुरुआत में जब अखंड भारत से अलग दुनिया के अन्य हिस्सों में लोग पढ़ना-लिखना और सभ्य होना सीख रहे थे, तो दूसरीर ओर भारत में विक्रमादित्य, पाणीनी, चाणक्य जैसे विद्वान व्याकारण और अर्थशास्त्र की नई इमारत खड़ी कर रहे थे। इसके बाद आर्यभट्ट, वराहमिहिर जैसे विद्वान अंतरिक्ष की खाक छान रहे थे। वसुबंधु, धर्मपाल, सुविष्णु, असंग, धर्मकीर्ति, शांतारक्षिता, नागार्जुन, आर्यदेव, पद्मसंभव जैसे लोग उन विश्वविद्यालय में पढ़ते थे जो सिर्फ भारत में ही थे। तक्षशिला, विक्रमशिला, नालंदा आदि अनेक विश्व विद्यालयों में देश विदेश के लोग पढ़ने आते थे।


The Islamic Concept of "Tawakkul" (Belief in God)

Amongst the interwoven threads of Islamic mysticism, ‘Tawakkul’ has been given an important place. This Arabic word may be translated as ‘trust in God’ or ‘reliance on God’. It constitutes one of the most basic features in the relationship between a believer and Allah (SWT). Tawakkul finds its roots deep within the Quranic teachings, prophetic sayings, and Islamic ethical tradition. The goal of this discourse is to shed light upon various aspects of tawakkul, its theological significance within Islam, practical demonstrations as well as impact on Muslims’ lives.

Speaking tawakkul means putting all your trust in Allah. The term itself comes from the Arabic language where “wakala” means entrustment or dependence upon another person. In other words, it implies that we should leave everything up to Him firmly believing that He alone can provide for us; keep us safe from harm’s way; and show us what path we are supposed to take next among many other things related to guidance or sustenance. This confidence rests upon our unshakeable faith in His knowledge, mercy, and power because there is no other deity but Him.

श्रीमुखलिंगेश्वर मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के मुखलिंगम के गांव में स्थित शिव मंदिर है।

इस मंदिर का निर्माण पूर्वी गंगा शासकों द्वारा किया गया था जिन्होंने 8 वीं शताब्दी ईस्वी में कलिंग पर शासन किया था।

Embracing Faith in a Changing World: Walking the Christian Walk

Founded in Belief: Fortifying Your Spiritual Basis A strong and enduring faith in Christ lies at the center of the Christian experience. It is crucial for believers to cultivate and fortify their spiritual basis by Bible study, prayer, and fellowship with like-minded people. Having a solid faith foundation provides us with direction and fortitude in a world where distractions clamor for our attention.