गुप्तकाशी प्रसिद्ध तीर्थ धाम केदारनाथ को यातायात से जोड़ने वाले रुद्रप्रयाग-गौरीकुण्ड राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित एक कस्बा है। गुप्तकाशी क्षेत्र केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है, साथ ही यहां कई खूबसूरत पर्यटक स्थल भी हैं। पाँच प्रसिद्ध प्रयाग हैं : देवप्रयाग, रुद्रप्रायाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग। रुद्रप्रयाग से मंदाकिनी नदी के किनारे गुप्तकाशी का मार्ग है। कुल दूरी लगभग ३५ किमी है। पैदल, घोड़ा या डाँडी से लोग जाते हैं, बहुत थोड़ी दूरी पैदल तय करनी होती है। चढ़ाई बड़ी विकट है।
जहाँ चढ़ाई आरंभ होती है वहीं अगस्त्य मुनि नाम का स्थान है; वहाँ अगस्त्य का मंदिर है। मार्ग रमणीक है। सामने वाणासुर की राजधानी शोणितपुर के भगनावशेष हैं। चढ़ाई पूरी होने पर गुप्तकाशी के दर्शन होते हैं। गुप्तकाशी को "गुह्यकाशी" भी कहते हैं। तीन काशी प्रसिद्ध हैं। भागीरथी के किनारे उत्तरकाशी, दूसरी गुप्तकाशी और तीसरी वाराणसी। गुप्तकाशी में एक कुंड है जिसका नाम है मणिकर्णिका कुंड। लोग इसी में स्नान करते हैं। इसमें दो जलधाराएँ बराबर गिरती रहती हैं जो गंगा और यमुना नाम से अभिहित हैं।
कुंड के सामने विश्वनाथ का मंदिर है। इससे मिला हुआ अर्धनारीश्वर का मंदिर है। इस स्थान के पौराणिक सन्दर्भ भी हैं, जो इसके नाम के बारे में बताते हैं। इस जगह का नाम गुप्तकाशी इसलिए पड़ा कि पांडवों को देखकर भगवान शिव वहीं छुप गए थे। गुप्तकाशी से भगवान शिव की तलाश करते हुए पांडव गौरीकुंड तक जाते हैं। लेकिन इसी जगह एक बड़ी विचित्र बात होती है। पांडवों में से नकुल और सहदेव को दूर एक सांड दिखाई देता है। भीम अपनी गदा से उस सांड को मारने दौड़ते हैं।
लेकिन वह सांड उनकी पकड़ में नहीं आता है। भीम उसके पीछे दौड़ते हैं और एक जगह सांड बर्फ में अपने सिर को घुसा देता है। भीम पूंछ पकड़कर खींचते हैं। लेकिन सांड अपने सिर का विस्तार करता है। सिर का विस्तार इतना बड़ा होता है कि वह नेपाल के पशुपति नाथ तक पहुंचता है। पुराण के अनुसार पशुपतिनाथ भी बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। देखते ही देखते वह सांड एक ज्योतिर्लिंग में बदल जाता है। फिर उससे भगवान शिव प्रकट होते हैं। भगवान शिव का साक्षात दर्शन करने के बाद पांडव अपने पापों से मुक्त होते हैं।