रमजान का महीना हर मुसलमान के लिए बेहद अहम होता है, जिसमें 30 दिनों तक रोजा रखा जाता है

इस्लाम के अनुसार पूरे रमजान को तीन अशरों में बांटा गया है, जिन्हें पहला, दूसरा और तीसरा अशरा कहा जाता है।

रमजान का महीना हर मुसलमान के लिए बेहद अहम होता है, जिसमें 30 दिनों तक रोजा रखा जाता है। इस्लाम के अनुसार पूरे रमजान को तीन भागों में बांटा गया है, जिन्हें पहला, दूसरा और तीसरा अशरा कहा जाता है। अशरा अरबी का 10वां नंबर है। इस तरह पहला अशरा रमजान के पहले 10 दिन (1-10) में, दूसरा अशरा दूसरे 10 दिन (11-20) में और तीसरा अशरा तीसरे दिन (21-30) में बांटा जाता है। इस तरह रमजान के महीने में 3 अशरे होते हैं। पहला अशरा रहमत का, दूसरा अशरा मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का और तीसरा अशरा खुद को नर्क की आग से बचाने के लिए।



रमजान के महीने के बारे में पैगंबर मोहम्मद ने कहा है, रमजान की शुरुआत में रहम है, बीच में मगफिरत (क्षमा) है और इसके अंत में जहन्नम की आग से सुरक्षा है। रमजान के पहले 10 दिनों में रोजा रखने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है। रमजान के बीच यानी दूसरे अशरे में मुसलमान अपने गुनाहों से पाक हो सकते हैं। वहीं रमजान के आखिरी यानि तीसरे अशरे में जहन्नम की आग से खुद को बचा सकता है. रमजान के 3 अशरे और उनका महत्व-


1. रमजान का पहला अशरा :-
रमजान के महीने के पहले 10 दिन रहम के होते हैं। रोजा रखने वालों पर अल्लाह की रहमत है। रमजान के पहले अशरे में मुसलमान ज्यादा से ज्यादा दान देकर गरीबों की मदद करें। सबके साथ प्रेम और दया का व्यवहार करना चाहिए।

2. रमजान का दूसरा अशरा :-
दूसरा अशरा रमजान के 11वें दिन से 20वें दिन तक चलता है। यह अशरा क्षमा का है। इस अशरे में पूजा करने से लोगों को अपने पापों से मुक्ति मिल सकती है। इस्लामी मान्यता के अनुसार अगर कोई व्यक्ति रमजान के दूसरे अशरे में अपने गुनाहों (पापों) के लिए माफी मांगता है तो इस समय अल्लाह अपने बंदों को बाकी दिनों की तुलना में जल्दी माफ कर देता है।

3. रमजान का तीसरा अशरा :-
रमजान का तीसरा और आखिरी अशरा 21वें दिन से शुरू होकर चांद के हिसाब से 29 या 30 तारीख तक चलता है. यह अशरा सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। तीसरे अशरे का उद्देश्य स्वयं को नरक की आग से बचाना है। इस दौरान हर मुसलमान को नर्क से बचने के लिए अल्लाह से दुआ करनी चाहिए। रमजान के आखिरी अशरे में कई मुस्लिम पुरुष और महिलाएं एहतकाफ में बैठते हैं। आपको बता दें, एहतकाफ में मुस्लिम पुरुष मस्जिद के कोने में बैठकर 10 दिन तक अल्लाह की इबादत करते हैं, जबकि महिलाएं घर में रहकर इबादत करती हैं।


The Religious Wisdom, Compassion, and Ahimsa of Jainism

Non-Violence­ (Ahimsa): This concept is key in Jainism. It encourage­s harmlessness in action, spee­ch, and thought to each living thing. Jains hold that every cre­ature has a soul, or "jiva." They are de­termined to cause the­ least harm possible. They practice­ tenderness and care­ in their everyday actions.Ve­getarianism: Jains are vege­tarians, related closely to the­ idea of ahimsa. They skip meat, fish, e­ggs, and certain veggies growing be­low the ground. Foods like onions and garlic are off the­ir menu as theyre tie­d to harming life. By eating vege­tarian, Jains aim to minimize animal harm and boost their spiritual cleanline­ss. 

गुडीमल्लम लिंगम भारत के आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के येरपेडु मंडल के एक छोटे से गाँव गुडीमल्लम में परशुरामेश्वर स्वामी मंदिर का एक प्राचीन लिंग है।

यह शिव को समर्पित एक हिंदू मंदिर परशुरामेश्वर मंदिर के गर्भगृह में है। 

शब-ए-बरात की रात सच्चे दिल से अल्लाह की इबादत करते हुए अगर कोई शख्स अपने गुनाहों से तौबा कर लेता है तो अल्लाह उसके सारे गुनाह माफ कर देता है।

 

शब-ए-बरात त्योहार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होता है और 15 तारीख की शाम तक मनाया जाता है।

अमृतसर के संस्थापक और सिख धर्म के चौथे गुरु, गुरु रामदास जी के जन्मदिन को प्रकाश पर्व या गुरु पर्व भी कहा जाता है।

श्री गुरु रामदास साहेबजी का जन्म कार्तिक वादी  2, विक्रमी संवत् 1591 (24 सितंबर सन् 1534) के प्रकाश में लाहौर की चुना मंडी में हुआ था, इनके पिता जी का नाम हरदासजी और माता जी का नाम दयाजी था।