राजस्थान के पुष्कर का ब्रह्मा मंदिर हिंदुओं के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है, यह विश्व का इकलौता ब्रह्मा मंदिर है।

ब्रह्माजी के कमल पुष्प से बना था पुष्कर सरोवर, जानें मंदिर के निर्माण की पौराणिक कहानी।

पुष्कर को हिंदुओं के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है।  यहां विश्व का इकलौता ब्रह्मा मंदिर है।  पुष्कर को हिंदुओं के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है।  यहां विश्व का इकलौता ब्रह्मा मंदिर है।  जिस प्रकार प्रयाग की मान्यता तीर्थराज के रूप में हैं, उसी तरह इस तीर्थ को पुष्कर राज कहा जाता है।  ज्येष्ठ पुष्कर के देवता भगवान ब्रह्मा, मध्य के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र माने जाते हैं।  सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा की यज्ञस्थली और ऋषि-मुनियों की तपस्थली तीर्थगुरु पुष्कर नाग पहाड़ के बीच बसा हुआ है।  रूष्ट हुई पत्नी के श्राप के कारण ही देशभर में ब्रह्माजी का इकलौता मंदिर पुष्कर में है।  पुष्कर सरोवर की उत्पत्ति भी स्वयं ब्रह्माजी ने की।  जिस प्रकार प्रयाग को तीर्थराज कहा जाता है।



उसी प्रकार से इस तीर्थ को पुष्कर राज कहा जाता है।  ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं।  यह तीनों पुष्कर ब्रह्मा जी के कमल पुष्प से बने।  पुष्कर में ही कार्तिक में देश का सबसे बड़ा ऊंट मेला लगता है, जिसमें देशी-विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में आते हैं।  साम्प्रदायिक सौहार्द्र की नगरी अजमेर से उत्तर-पश्चिम में करीब 11 किलोमीटर दूर पुष्कर में अगस्त्य, वामदेव, जमदाग्नि, भर्तृहरि इत्यादि ऋषियों के तपस्या स्थल के रूप में उनकी गुफाएं आज भी नाग पहाड़ में हैं।  पुष्कर के मुख्य बाजार के अंतिम छोर पर ब्रह्माजी का मंदिर बना है।  आदि शंकराचार्य ने संवत् 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी।  मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोकलचंद पारेख ने 1809 ई। में बनवाया था।


यह मंदिर देश में ब्रह्माजी का एकमात्र प्राचीन मंदिर है।  मंदिर के पीछे रत्नागिरि पहाड़ पर जमीन तल से दो हजार तीन सौ 69 फुट की ऊँचाई पर ब्रह्माजी की प्रथम पत्नी सावित्री का मंदिर है।  परमपिता ब्रह्मा और मां सावित्री के बीच दूरियां उस वक्त बढ़ीं, जब ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ का आयोजन किया।  शास्त्रानुसार यज्ञ पत्नी के बिना सम्पूर्ण नहीं माना जाता।  पूजा का शुभ मुहूर्त निकला जा रहा था।  सभी देवी-देवता यज्ञ स्थल पर पहुंच गए, लेकिन सावित्री को पहुंचने में देर हो गई।  कहते हैं कि जब शुभ मुहूर्त निकलने लगा, तब कोई उपाय न देख ब्रह्माजी ने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट किया और उनसे विवाह कर यज्ञ पूरा किया।

इस बीच सावित्री जब यज्ञस्थल पहुंचीं, तो वहां ब्रह्माजी के बगल में गायत्री को बैठे देख क्रोधित हो गईं और उन्होंने ब्रह्माजी को श्राप दे दिया कि पृथ्वी के लोग उन्हें भुला देंगे और कभी पूजा नहीं होगी।  किन्तु जब देवताओं की प्रार्थना पर वो पिघल गयीं और कहा कि ब्रह्माजी केवल पुष्कर में ही पूजे जाएंगे।  इसी कारण यहाँ के अलावा और कहीं भी ब्रह्माजी का मंदिर नहीं है।  सावित्री का क्रोध इतने पर भी शांत नहीं हुआ।  उन्होंने विवाह कराने वाले ब्राह्मण को भी श्राप दिया कि चाहे जितना दान मिले, ब्राह्मण कभी संतुष्ट नहीं होंगे।  गाय को कलियुग में गंदगी खाने और नारद को आजीवन कुंवारा रहने का श्राप दिया।  अग्निदेव भी सावित्री के कोप से बच नहीं पाए।  उन्हें भी कलियुग में अपमानित होने का श्राप मिला।  पुष्कर में ब्रह्माजी से नाराज सावित्री दूर पहाड़ों की चोटी पर विराजती हैं।


Exploring the Wisdom of the Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 5

The Bhagavad Gita, a revered ancient text of spiritual wisdom, offers profound insights into life, purpose, and the path to self-realization. Chapter 2 of the Gita entitled "Sankhya Yoga" deals with the concept of the eternal soul and the nature of the self.  Verse 5 of this chapter conveys an essential message that illuminates the importance of inner strength and power. Join us as we explore the wisdom contained in Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 5  and discover its meaning in our lives.

The Heart of Christianity: Handling Faith in a Contemporary Environment

1. Basis in Scripture: A profound respect for the Bible is the cornerstone of Christian life. Scripture is our road map, providing guidance, consolation, and direction in all facets of life. Our beliefs and deeds are firmly based on the teachings of Jesus, the stories recorded in the Old Testament, and the epistolary writings of the apostles. Frequent Bible study strengthens our comprehension of God's nature and His purpose for our life, influencing our viewpoints and decisions.

अहोबिलम आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में पूर्वी घाट पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है जिसे गरुड़द्री पहाड़ी के नाम से जाना जाता है।

यह स्थान पांच किलोमीटर के दायरे में स्थित भगवान नरसिंह के नौ मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।