कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ मास के अंतिम आठ दिन। उस पर्व को अष्टानिका पर्व कहते हैं। और इन अष्टानिका पर्व में भक्त सुबह से रात तक स्वयं को ईश्वर भक्ति में समर्पित कर जीवन में श्रेष्ठ बनने की प्रक्रिया से गुजरता है। अष्टानिका उत्सव का यह आयोजन हमें यही संदेश देता है कि इस दौरान हमें ईश्वर की भक्ति में स्वयं को समर्पित कर सहज हो जाना चाहिए। यह बात प्रतिष्ठाचार्य पंडित रामप्रकाश जैन भिंड ने अष्टानिका महापर्व के अवसर पर आदिनाथ जिनालय में आयोजित नंदीश्वर विधान की भक्ति के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि इस बार शहर के अधिकांश जिलों में भक्ति उत्सव का आयोजन किया जा रहा है. इसी क्रम में आदिनाथ जिनालय में भी नंदीश्वर द्वीप विधान के भक्ति उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें कार्यक्रम की शुरुआत में वीरेंद्र जैन पत्ते द्वारा ध्वजारोहण किया गया और नंदीश्वर दीप विधान की पूजा और अर्घ समर्पण मरुदेवी महिला मंडल, दिगंबर जैन महिला महासमिति सहित महिला मंडल के पदाधिकारियों और सदस्यों द्वारा किया जा रहा है.
वहीं छतरी जैन मंदिर में पंडित राजकुमार शास्त्री शदोरा की प्रतिष्ठा में आयोजित सिद्धचक्र महामंडल विधान की पूजा के दौरान शनिवार को 128 अर्घ्य देकर सिद्ध प्रभु का पूजन किया गया. इस दौरान उन्होंने श्रावक के महत्वपूर्ण कर्तव्यों को बताते हुए कहा कि श्रावक का मुख्य धर्म दान और पूजा है. जो प्रतिदिन दान-पुण्य नहीं करता है। वह श्रावक की श्रेणी में नहीं है। विशेष त्योहारों पर हमें पूजा के अवसर पर भक्ति करनी चाहिए। वहीं महावीर जिनालय स्थित त्रिशाला महिला मंडल में आयोजित सिद्ध चक्र महामंडल विधान के दौरान पंडित सुगनचंद जैन अमोल द्वारा विधान की पूरी कार्यवाही की गयी.
जिसमें मंदाना पर 64 अर्घों का समर्पण कर सिद्धों की पूजा की गई। इस दौरान पंडित जी ने अष्टानिका पर्व में पूर्ण भक्ति का विशेष महत्व बताया। चंद्रप्रभा जिनालय में आयोजित सिद्ध चक्र महामंडल विधान के अवसर पर पंडित अजीत जैन अरिहंत ने विधान के दौरान विभिन्न धार्मिक गतिविधियों के साथ 64 अर्घों का समर्पण किया. इस दौरान जहां सैकड़ों लोग सुबह से दोपहर तक भगवान की पूजा में अर्घ्य दे रहे हैं. वहीं रात में भी भक्त भगवान की विशेष भक्ति कर अपना समर्पण दिखा रहे हैं।