वर्ष भर में असंख्य भारतीय भक्त सालासर बालाजी के दर्शन के लिए सालासर धाम जाते हैं। हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा पर बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। भारत में यह एकमात्र बालाजी का मंदिर है जिसमे बालाजी के दाढ़ी और मूँछ है। बाकि चेहरे पर राम भक्ति में राम आयु बढ़ाने का सिंदूर चढ़ा हुआ है। हनुमान सेवा समिति, मंदिर और मेलों के प्रबन्धन का काम करती है। यहाँ रहने के लिए कई धर्मशालाएँ और खाने-पीने के लिए कई जलपान-गृह (रेस्तराँ) हैं। श्री हनुमान मंदिर सालासर कस्बे के ठीक मध्य में स्थित है। वर्त्तमान में सालासर हनुमान सेवा समिति ने भक्तों की तादाद बढ़ते देखकर दर्शन के लिए अच्छी व्यवस्था की है। सालासर कस्बा, राजस्थान में चूरू जिले का एक हिस्सा है और यह जयपुर बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है।
यह सीकर से 57 किलोमीटर, सुजानगढ़ से 24 किलोमीटर और लक्ष्मणगढ़ से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सालासर कस्बा सुजानगढ़ पंचायत समिति के अधिकार क्षेत्र में आता है और राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की नियमित बस सेवा के द्वारा दिल्ली, जयपुर और बीकानेर से भली प्रकार से जुड़ा है। इंडियन एयरलाइंस और जेट एयर सेवा जो जयपुर तक उड़ान भरती हैं, यहाँ से बस या टैक्सी के द्वारा सालासर पहुँचने में 3.5 घंटे का समय लगता है। सुजानगढ़, सीकर, डीडवाना, जयपुर और रतनगढ़ सालासर बालाजी के नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं। यह शहर पिलानी शहर से लगभग 140 किलोमीटर की दूरी पर है। श्रावण शुक्लपक्ष नवमी, संवत् 1811 - शनिवार को एक चमत्कार हुआ। नागौर जिले में असोटा गाँव का एक गिन्थाला-जाट किसान अपने खेत को जोत रहा था।
अचानक उसके हल से कोई पथरीली चीज़ टकरायी और एक गूँजती हुई आवाज पैदा हुई। उसने उस जगह की मिट्टी को खोदा और उसे मिट्टी में सनी हुई दो मूर्त्तियाँ मिलीं। उसकी पत्नी उसके लिए भोजन लेकर वहाँ पहुँची। किसान ने अपनी पत्नी को मूर्त्ति दिखायी। उन्होंने अपनी साड़ी (पोशाक) से मूर्त्ति को साफ़ की। यह मूर्त्ति बालाजी भगवान श्री हनुमान की थी। उन्होंने समर्पण के साथ अपने सिर झुकाये और भगवान बालाजी की पूजा की। भगवान बालाजी के प्रकट होने का यह समाचार तुरन्त असोटा गाँव में फ़ैल गया। असोटा के ठाकुर ने भी यह खबर सुनी। बालाजी ने उसके सपने में आकर उसे आदेश दिया कि इस मूर्त्ति को चूरू जिले में सालासर भेज दिया जाए।
उसी रात भगवान हनुमान के एक भक्त, सालासर के मोहन दासजी महाराज ने भी अपने सपने में भगवान हनुमान यानि बालाजी को देखा। भगवान बालाजी ने उसे असोटा की मूर्त्ति के बारे में बताया। उन्होंने तुरन्त आसोटा के ठाकुर के लिए एक सन्देश भेजा। जब ठाकुर को यह पता चला कि आसोटा आये बिना ही मोहन दासजी को इस बारे में थोड़ा-बहुत ज्ञान है, तो वे चकित हो गये। निश्चित रूप से, यह सब सर्वशक्तिमान भगवान बालाजी की कृपा से ही हो रहा था। मूर्त्ति को सालासर भेज दिया गया और इसी जगह को आज सालासर धाम के रूप में जाना जाता है। दूसरी मूर्त्ति को इस स्थान से 25 किलोमीटर दूर पाबोलाम (जसवंतगढ़) में स्थापित कर दिया गया। पाबोलाव में सुबह के समय समारोह का आयोजन किया गया और उसी दिन शाम को सालासर में समारोह का आयोजन किया गया।