दिगम्बर, श्वेताम्बर के धार्मिक ग्रंथ साहित्य को मान्यता नहीं देते, लेकिन यह मानते हैं कि प्रारंभिक साहित्य धीरे-धीरे भुला दिया गया और दूसरी शताब्दी तक वह पूरी तरह खो गया था।
जैन धर्म का विभाजन
'दिगम्बर' एक संस्कृत शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'नग्न'। कहा जाता है कि मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के काल में गंभीर अकाल के समय जैन मुनियों के गंगा नदी या उज्जैन से दक्षिण की ओर चले जाने के कारण ही जैन धर्म दो शाखाओं 'दिगम्बर' तथा 'श्वेताम्बर' में बंट गया था। प्रवासी मुनियों के प्रमुख भद्रबाहु ने इस पर बल दिया कि पुरुषों को कोई वस्त्र नहीं पहनना चाहिए और इस प्रकार उन्होंने अंतिम तीर्थंकर या मोक्ष प्राप्त करने वाले शिक्षक महावीर द्वारा प्रस्तुत उदाहरण का अनुसरण किया।
उत्तर भारत में ही रह गए मुनियों के प्रमुख स्थूलभद्र ने सफ़ेद रंग के वस्त्र पहनने की अनुमति दी। आम युग की शुरूआत के समय दिगम्बर और श्वेताम्बर इस बात पर अंतत: अलग हो गए कि क्या संपत्ति (यहां तक कि वस्त्र भी) रखने वाले किसी मुनि के लिए मोक्ष प्राप्त करना संभव है? हालांकि दोनों गुटों द्वारा की गई जैन धर्म के दार्शनिक सिद्धांतों की विवेचना में कोई उल्लेखनीय अंतर नहीं है और धार्मिक अनुष्ठनों, ग्रंथों और साहित्य में समय के साथ मतभेद उत्पन्न होते रहे हैं, लेकिन धार्मिक स्थानों के स्वामित्व को लेकर बहुत-से विवाद उठे, जो आज भी विद्यमान हैं।
शाखाएँ:- जैन धर्म की दिगम्बर शाखा में तीन शाखाएँ हैं-
मंदिरमार्गी
मूर्तिपूजक
तेरापंथी
मान्यताएँ
निर्वस्त्र रहने के अलावा दिगम्बरों की कुछ ऐसी मान्यताएं हैं, जिनसे श्वेताम्बर मतभेद रखते हैं, यथा-
पूर्ण संत (केवलिन) को जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्कता नहीं
महावीर ने कभी विवाह नहीं किया
कोई महिला, पुरुष के रूप में पुनर्जन्म लिए बिना मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकती
सभी तीर्थंकरों की मूर्ति बनाते समय उन्हें नग्न, आभूषणहीन और नीचे की ओर दृष्टि किए हुए दिखाना चाहिए।
दक्षिण भारत में मध्यकालीन युग में दिगम्बरों का प्रर्याप्त प्रभाव था। लेकिन यह कम होता गया, क्योंकि उस क्षेत्र में हिन्दू भक्तिवाद, शैववाद और वैष्णववाद बढ़ने लगा था। दिगम्बर मत प्रमुख रूप से दक्षिण महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान जैसे राज्यों में अधिक प्रचलित है और इसके 10 लाख अनुयायी हैं।