मंदिर की वेबसाइट के अनुसार, श्रीरंगम को दुनिया का सबसे बड़ा क्रियाशील हिन्दू मंदिर माना जा सकता है क्योंकि इसका क्षेत्रफल लगभग 6,31,000 वर्ग मी है जिसकी परिधि 4 किमी (10,710 फीट) है। श्रीरंगम सबसे बड़ा क्रियाशील मंदिर होने का दावा करता है क्योंकि अंगकोर वट दुनिया का सबसे बड़ा लेकिन गैर-क्रियाशील हिन्दू मंदिर है। श्रीरंगम मंदिर का परिसर 7 संकेंद्रित दीवारी अनुभागों और 21 गोपुरम से बना है। मंदिर के गोपुरम को 'राजगोपुरम' कहा जाता है और यह 236 फीट (72 मी) है जो एशिया में सबसे लम्बा है।
इसके बारे में एक मिथक है कि गोपुरम के ऊपर से श्रीलंका के तट को देखा जा सकता है। मंदिर का गठन सात प्रकारों से हुआ है जिसका गोपुरम अक्षीय पथ से जुड़ा हुआ है जो सबसे बाहरी प्रकार की तरफ सबसे ऊंचा और एकदम अन्दर की तरफ सबसे नीचा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वैदिक काल में गोदावरी नदी के तट पर गौतम ऋषि का आश्रम था। उस समय अन्य क्षेत्रों में जल की काफी कमी थी। एक दिन जल की तलाश में कुछ ऋषि गौतम ऋषि के आश्रम जा पहुंचे। अपने यथाशक्ति अनुसार गौतम ऋषि ने उनका आदर सत्कार कर उन्हें भोजन कराया।
लेकिन ऋषियों को उनसे ईर्ष्या होने लगी। उर्वर भूमि के लालच में ऋषियों ने मिलकर छल द्वारा गौतम ऋषि पर गौ हत्या का आरोप लगा दिया तथा उनकी सम्पूर्ण भूमि हथिया ली। इसके बाद गौतम ऋषि ने श्रीरंगम जाकर श्री रंगनाथ श्री विष्णु की आराधना की और उनकी सेवा की। गौतम ऋषि के सेवा से प्रसन्न होकर श्री रंगनाथ ने उन्हें दर्शन दिया और पूरा क्षेत्र उनके नाम कर दिया ओर गौतम ऋषि के आग्रह पर स्वयं ब्रह्माजी ने विश्व केे सबसे बड़े इस भव्य मंदिर का निर्माण किया था।
भगवान श्री राम के वनवास काल मे, इस मंदिर में देवताओं की, भगवान राम के द्वारा पूजा की जाती थी और रावण पर श्री राम की विजय के बाद मंदिर ओर देवताओं को, राजा विभीषण को सौंप दिया गया। भगवान श्री विष्णु विभिषण के सामने उपस्थित हुए और इसी स्थान पर 'रंगनाथ' के रूप में रहने की इच्छा व्यक्त की। कहा जाता है कि तब से भगवान् विष्णु श्री रंगनाथस्वामी के रूप में यहां वास करते हैं ओर श्री रंगम् से लेकर श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, तिरुवनंतपुरम तक के क्षेत्र में व्याप्त हैं।