काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

यह काशी विश्वनाथ मंदिर पिछले कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है। 

काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ है। यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया और काशीनरेश तथा विद्वतजनों द्वारा उस ग्रन्थ की हाथी पर धूमधाम से शोभायात्रा निकाली गयी। महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृढ़ संकल्प से काशी कारीडोर के अन्तर्गत काशी विश्वनाथ जी के मंदिर का विस्तार किया गया जो अद्भुत अकल्पनीय साथ ही आश्चर्य जनित भी है प्रत्येक काशी वासियों ने ऐसी परिकल्पना भी नहीं की होगी।



माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने 8 मार्च 2019 को काशी विश्वनाथ कारीडोर का शिलान्यास किया गया लगभग 32 महिनों के अनवरत निर्माण कार्य के बाद 13 दिसम्बर 2021 मोदी जी द्वारा लोकार्पण किया गया |वहीं दूसरी तरफ काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा विभिन्न प्रकार की सुविधाएं प्राप्त करने हेतु सुगम दर्शन से लेकर रुद्राभिषेक विभिन्न आरती इत्यादि के लिए शुल्कों का प्रावधान कर जिस तरह से जन साधारण विशेष कर नित्य पूजार्चन करने वालों के लिए यह कष्टप्रद है किसी भी ज्योतिर्पिठ का व्यवसायी करण उचित नहीं है| वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन् 1780 में करवाया गया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने द्वारा बनवाया गया था। उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित भगवान शिव का यह मंदिर हिंदूओं के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जोकि गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है।


कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है। जिसका जीर्णोद्धार 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था और वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था। जिसे एक बार फिर बनाया गया लेकिन वर्ष 1447 में पुनं इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया। हिन्दू धर्म में कहते हैं कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलायी जाती है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे संसार की रचना की।

अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये। सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राणी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है। 


बुधनिलकांठा मंदिर, नेपाल के बुधनिलकांठा में स्थित

बुधनिलकांठा मंदिर, नेपाल के बुधनिलकांठा में स्थित, भगवान महाविष्णु को समर्पित एक हिंदू खुला मंदिर है। बुधनीलकांठा मंदिर भी है नारायणथान मंदिर के रूप में जाना जाता है, और भगवान महाविष्णु की एक बड़ी झुकी हुई मूर्ति द्वारा पहचाना जा सकता है।

जानिए ईद-उल-फितर के इतिहास और महत्व के साथ, भारत में कब मनाया जाएगा ये त्योहार।

चांद दिखने के हिसाब से ही ईद मनाने की तारीख तय की जाती है। लेकिन ईद मनाने के साथ-साथ इसके इतिहास से भी वाकिफ होना जरूरी है। जिससे इस पर्व का महत्व और बढ़ जाता है।

केदारनाथ भारत के उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल मण्डल के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित एक नगर है।

यह केदारनाथ मंदिर का शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है, जिसे चारधाम और पंच केदार में गिना जाता है। 

श्रीरंगम, अपने श्री रंगनाथस्वामी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जो हिन्दुओं विशेष रूप से वैष्णवों का एक प्रमुख तीर्थ है।

श्रीरंगम का यह मन्दिर श्री रंगनाथ स्वामी को समर्पित है जहाँ भगवान् श्री हरि विष्णु शेषनाग शैय्या पर विराजे हुए हैं।

वाराणसी विश्व के प्राचीनतम सतत आवासीय शहरों में से एक है।

मध्य गंगा घाटी में पहली आर्य बस्ती यहाँ का आरम्भिक इतिहास है। दूसरी सहस्राब्दी तक वाराणसी आर्य धर्म एवं दर्शन का एक प्रमुख स्थल रहा।