तारकेश्वर मंदिर शिवरात्रि पर होती है विशेष पूजा

भगवान शिव के लिए देवी लक्ष्मी ने यहां खोदा है कुंड, देवी पार्वती हैं वृक्ष के रूप में

देवभूमि उत्तराखंड की पावन भूमि पर ढेर सारे पावन मंदिर और स्थल हैं। उत्तराखंड को महादेव शिव की तपस्थली भी कहा जाता है। भगवान शिव इसी धरा पर निवास करते हैं। इसी जगह पर भगवान शिव का एक मंदिर बेहद ही खूबसूरत जगह पर मौजूद है और वह है ताड़केश्वर भगवान का मंदिर। मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मन्नत भगवान पूरी करते हैं। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु न केवल देश से बल्कि विदेशों से भी आते हैं। इस मंदिर के पीछे एक बेहद रोचक कहानी छिपी है। ताड़केश्वर महादेव मंदिर बलूत और देवदार के वनों से घिरा हुआ है जो देखने में बहुत मनोरम लगता है।



यहां कई पानी के छोटे छोटे झरने भी बहते हैं। यह मंदिर सिद्ध पीठों में से एक है। यहां आप किसी भी दिन सुबह 8 बजे से 5 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। लेकिन महाशिवरात्रि पर यहां का नजारा अद्भुत होता है। इस अवसर पर यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। मंदिर परिसर में एक कुंड भी है। मान्यता है है कि यह कुंड स्वयं माता लक्ष्मी ने खोदा था। इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए होता है। जनश्रुति के अनुसार यहां पर सरसों का तेल और शाल के पत्तों का लाना वर्जित है। लेकिन इसकी वजह के बारे में लोग कुछ कह नहीं पाते।


पौराणिक कथाओं के अनुसार, ताड़कासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी। शिवजी से वरदान पाकर ताड़कासुर अत्याचारी हो गया। परेशान होकर देवताओं और ऋषियों से भगवान शिव से प्रार्थन की और ताड़कासुर का अंत करने के लिए कहा। ताड़कसुर का अंत केवल भगवान शिव और माता पार्वती का पुत्र कार्तिकेय कर सकते थे। भगवान शिव के आदेश पर कार्तिकेय ताड़कासुर से युद्ध करने पहुंच जाते हैं। अपना अंत नजदीक जानकर ताड़कासुर भगवान शिव से क्षमा मांगता है।

भोलेनाथ असुरराज ताड़कासुर को क्षमा कर देते हैं और वरदान देते हैं कि कलयुग में इस स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से होगी इसलिए असुरराज ताड़कासुर के नाम से यहां भगवान भोलेनाथ ताड़केश्वर कहलाते हैं। एक अन्य दंतकथा भी यहां प्रसिद्ध है। एक साधु यहां रहते थे जो आस-पास के पशु पक्षियों को सताने वाले को ताड़ते यानी दंड देते थे। इनके नाम से यह मंदिर ताड़केश्वर के नाम से जाना गया। ताड़कासुर के वध के बाद भगवान शिव ने यहां पर विश्राम किया था। विश्राम के दौरान भगवान शिव पर सूर्य की तेज किरणें पड़ रही थीं। भगवान शिव पर छाया करने के लिए स्वयं माता पार्वती सात देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर वहां प्रकट हुईं। इसलिए आज भी मंदिर के पास स्थित 7 देवदार के वृक्षों को देवी पार्वती का स्वरूप मानकर पूजा जाता है।


How did Hinduism survive despite multiple invasions?


Hinduism has survived despite several invasions and external influences because of its adaptability, resilience and the enduring spiritual and cultural practices of its followers.
Hinduism is a complex and diverse religion, shaped by various cultural, philosophical and social influences over thousands of years. 

 

Jain Morality and Religion Guide for Moral Behavior and Soul Growth

Jainism, one of the worlds oldest religions, offers deep insights on reality, human life and moral existence. Jain philosophy is founded on three fundamental ideas; Ahimsa (non-violence), Anekantavada (non-absolutism) and Aparigraha (non- possession). This book provides an in-depth examination of these basic aspects of Jainism such as their meaning, practical implications and transformative value in guiding people towards moral behavior and spiritual development.

The Principle of Non-Violence:The principle of non-violence is described as being not merely the backbone but also the corner stone of Jain philosophy. It goes further than just refraining from physical injury; it encompasses all forms of harm that are inflicted upon sentient beings including psychological, emotional or environmental harm. Ahimsa demands that individuals should acquire compassion, empathy for others and respect for each form of life since all forms are interconnected with a common nature. Jains embrace Ahimsa to avoid causing any suffering if they can help it, to create peaceful relationships with others and maintain harmony in their interaction with the world around them.

श्री स्वामीनारायण मंदिर कालूपुर स्वामीनारायण सम्प्रदाय का पहला मंदिर है, जो एक हिंदू संप्रदाय है।

श्री स्वामीनारायण मंदिर अहमदाबाद के कालूपुर क्षेत्र में स्थित है, जो संप्रदाय के संस्थापक स्वामीनारायण के निर्देश पर बनाया गया था।

प्राचीन कोटेश्वर मंदिर भगवान शिव की आराधना के रूप में प्रसिद्ध है, साथ ही इस मंदिर की दीवारों पर सदियों पुरानी पेंटिंग आज भी जीवित है।

इस शिवलिंग के बारे में कहा जाता है इस शिवलिंग को औरंगजेब ने किले से निकाल फेंका था, जहां यह शिवलिंग गिरा था वह सिंधिया ने मंदिर स्थापित किया था।