ऐसे हुई थी सिख धर्म की शुरुआत, नानक देव को मिला 'गुरु' का दर्जा

23 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा है. हिंदू धर्म में इस दिन का खास महत्व है. इसके अलावा सिख धर्म में भी इस दिन की बहुत अहमियत है. कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन सिखों के पहले गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था. इस दिन को गुरुनानक जयंती और प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है. सिख धर्म के लोगों के लिए गुरुनानक जयंती एक महत्वपूर्ण और बड़ा पर्व है.  गुरुनानक जयंती के अवसर पर आइए जानते हैं गुरुनानक जी के जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें....

गुरुनानक देव जी के पिता नाम कालू बेदी और माता का नाम तृप्ता देवी था. नानक देव जी की बहन का नाम नानकी था. 

जब गुरुनानक देव बड़े हुए तो उनके पिता ने उन्हें गायों का ख्याल रखने की जिम्मेदारी दी. लेकिन नानक जी बीच-बीच में ध्यान करने लग जाते थे और गाय दूसरे लोगों के खेतों में जाकर उनकी फसल खराब कर देती थीं. ये सब देखकर गुरुनानक जी के पिता उनसे काफी गुस्सा हो जाते थे. लेकिन गांव के लोगों ने गुरुनानक के साथ कई चमत्कारी चीजें होती देखीं. इसके बाद गांव के लोगों को लगता था कि गुरुनानक जरूर संत हैं. 



गुरुनानक देव को ध्यान करते देख उनके एक पड़ोसी ने नानक जी के पिता से उनको 
सांस्कृतिक विषय में पढ़ाई कराने के लिए कहा. उनका मानना था कि धर्म से 
जुड़ी चीजों में नानक को काफी रूचि है.सन् 1487 में नानक जी का विवाह माता सुलखनी से हुआ. उनके दो पुत्र श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द थे. गुरुनानक जी के पिता चाहते थे कि वे अपना कारोबार करें, ताकि अपने परिवार की जरूरतों को पूरा कर सकें. इसके लिए उनके पिता ने उन्हें नया कारोबार शुरू करने के लिए कुछ पैसे दिए. लेकिन नानक ने उन पैसों से रास्ते में मिले भूखे और यतीम लोगों को खाना खिला दिया. जब वह खाली हाथ घर लौटे तो  उनके पिता उनपर काफी गुस्सा हुए. लेकिन नानक ने कहा कि अच्छा काम करने का फल हमेशा अच्छा ही होता है. 


एक समय ऐसा भी आया जब  उनके पिता उनसे परेशान हो चुके थे. नानक के पिता ने उन्हें काम के लिए नानकी के घर रहने भेज दिया. नानक की बहन नानकी सुलतानपुर में रहती थीं. नानक ने वहां काम करना शुरू किया. 

कुछ दिनों के बाद नानक की मुलाकात वहां एक मुस्लिम कवि मरदाना से हुई. वे हर सुबह काम पर जाने से पहले उनसे मिलते और नदी के किनारे बैठकर ध्यान करते.  ये देखकर वहां के लोगों को काफी आश्चर्य हुआ कि दो अलग धर्म के लोग एक साथ कैसे ध्यान कर सकते हैं.


The Bodhi Religion: Providing Light on the Way to Wisdom

Bodh's Historical History: The life and teachings of Siddhartha Gautama, who gave up a life of luxury some 2,500 years ago in order to discover the actual nature of existence, are the source of Bodh. He attained wisdom under the Bodhi tree after years of meditation and reflection, which gave rise to the term "Bodhism" or the "Way of a period of The foundation of Bodh is the teachings of Gautama Buddha, which lead believers on a path towards freedom from ignorance and suffering.

Bhagavad Gita, Chapter 2, Verse 27

"Jātasya hi dhruvo mṛityur dhruvaṁ janma mṛitasya cha
Tasmād aparihārye ’rthe na tvaṁ śhochitum-arhasi"

Translation in English:

"One who has taken birth is sure to die, and after death, one is sure to be born again. Therefore, in an inevitable situation, you should not lament, O Arjuna."

Meaning in Hindi:

"जो जन्म लेता है, वह निश्चित रूप से मरना ही है और मरने के बाद निश्चित रूप से पुनर्जन्म लेना ही है। इसलिए, इस अटल प्रकृति के कारण तुम्हें शोक करने का कोई कारण नहीं है, हे अर्जुन!"

कोणार्क, ओडिशा में सूर्य मंदिर

कोणार्क सूर्य मंदिर एक 13वीं शताब्दी सीई (वर्ष 1250) कोणार्क में सूर्य मंदिर है जो पुरी शहर से लगभग 35 किलोमीटर (22 मील) उत्तर पूर्व में पुरी जिले, ओडिशा, भारत में समुद्र तट पर है। मंदिर का श्रेय लगभग 1250 ईस्वी पूर्व गंगा वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम को दिया जाता है।

भारत के त्योहारों पर नजर डालें तो ज्यादातर त्योहार फसल कटने के बाद ही पड़ते हैं, पोंगल त्योहार भी इनमे से एक है।

अन्य त्योहारों की तरह, पोंगल को उत्तरायण पुण्यकालम के रूप में जाना जाता है जिसका हिंदू पौराणिक कथाओं में विशेष महत्व है।

Bhagavad Gita, Chapter 2, Verse 13

देहिनोऽस्मिन् यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥

Translation (English):
Just as the embodied soul continuously passes through childhood, youth, and old age, similarly, at the time of death, the soul attains another body. The wise person is not deluded by this.

Meaning (Hindi):
जैसे कि शरीरी इस शरीर में कुमार्य, यौवन और वृद्धावस्था से गुजरता है, वैसे ही मृत्यु के समय यह शरीर छोड़कर दूसरे शरीर को प्राप्त करता है। धीर पुरुष इससे मोहित नहीं होता॥