श्री चामुंडा देवी मंदिर, कांगडा, हिमाचल प्रदेश

 चामुण्डा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठो में से एक है। 

हिमाचल प्रदेश को देव भूमि भी कहा जाता है। इसे देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है। पूरे हिमाचल प्रदेश में 2000 से भी ज्यादा मंदिर है और इनमें से ज्यादातर प्रमुख आकर्षक का केन्द्र बने हुए हैं। इन मंदिरो में से एक प्रमुख मंदिर चामुण्डा देवी का मंदिर है जो कि जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है। चामुण्डा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठो में से एक है। वर्तमान में उत्तर भारत की नौ देवियों में चामुण्डा देवी का दुसरा दर्शन होता है वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा में माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं यहां पर आकर श्रद्धालु अपने भावना के पुष्प मां चामुण्डा देवी के चरणों में अर्पित करते हैं। मान्यता है कि यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। देश के कोने-कोने से भक्त यहां पर आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। चामुण्डा देवी का मंदिर समुद्र तल से 1000 मी. की ऊँचाई पर स्थित है। यह धर्मशाला से 15 कि॰मी॰ की दूरी पर है। यहां प्रकृति ने अपनी सुंदरता भरपूर मात्रा में प्रदान कि है। चामुण्डा देवी मंदिर बंकर नदी के किनारे पर बसा हुआ है। पर्यटको के लिए यह एक पिकनिक स्पॉट भी है। यहां कि प्राकृतिक सौंदर्य लोगो को अपनी और आकर्षित करता है। चामुण्डा देवी मंदिर मुख्यता माता काली को समर्पित है। माता काली शक्ति और संहार की देवी है। जब-जब धरती पर कोई संकट आया है तब-तब माता ने दानवो का संहार किया है। असुर चण्ड-मुण्ड के संहार के कारण माता का नाम चामुण्डा पड़ गया।



देवी की उत्पत्ति कथा:-
दूर्गा सप्तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था। इस युद्ध में असुरो की विजय हुई। असुरो का राजा महिषासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों कि भांति धरती पर विचलन करने लगे। देवताओं के ऊपर असुरों ने काफी अत्याचार किया। देवताओं ने विचार किया और वह भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें देवी कि अराधना करने को कहा। देवताओं ने पूछा वो देवी कौन है जो कि हमार कष्टो का निवारण करेगी। इसी योजना के फलस्वरूप त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के अंदर से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ जो देखते ही देखते एक स्त्री के रूप में पर्वितित हो गया। इस देवी को सभी देवी-देवताओं ने कुछ न कुछ भेट स्वरूप प्रदान किया। भगवान शंकर ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा तथा समुद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की। तभी सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टो का निवारण हो सके। और हुआ भी ऐसा ही। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी। इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। जिसमें देवी कि विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया।


पौराणिक कथा के अनुसार:-
चामुण्डा देवी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों में से एक है। पूरे भारतवर्ष में कुल 51 शक्तिपीठ है। जिन सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंधो के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिरे थे। शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयी। यज्ञ स्थल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली, नगरकोट में स्तनों का कुछ भाग गिरने से बृजेश्वरी, ज्वालामुखी में जीह्वा गिरने से ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का अग्रिम भाग गिरने के कारण मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण भद्रकाली,सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने के कारण शाकम्भरी देवी, कराची के पास ब्रह्मरंध्र गिरने से माता हिंगलाज भवानी,चरणों का कुछ अंश गिरने से चिंतपुर्णी, आसाम में कोख गिरने से कामाख्या देवी,नयन गिरने से नैना देवी आदि शक्तिपीठ बन गये। मान्यता है कि चामुण्डा देवी मंदिर में माता सती के चरण गिरे थे।

नाम की कहानी:-
माता का नाम चामुण्ड़ा पडने के पीछे एक कथा प्रचलित है। दूर्गा सप्तशती में माता के नाम की उत्पत्ति कथा वर्णित है। हजारों वर्ष पूर्व धरती पर शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्यो का राज था। उनके द्वारा देवताओं को युद्ध में परास्त कर दिया गया जिसके फलस्वरूप देवताओं ने देवी दूर्गा कि आराधना की और देवी दूर्गा ने उन सभी को वरदान दिया कि वह अवश्य ही इन दोनों दैत्यो से उनकी रक्षा करेंगी। इसके पश्चात माता दुर्गा ने दो रूप धारण किये एक माता महाकाली का और दूसरा माता अम्बे का। माता महाकाली जग में विचरने लगी और माता अम्बे हिमालय में रहने लगी। तभी वहाँ चण्ड और मुण्ड आए वहाँ। देखकर देवी अम्बे को मोहित हुए और कहा दैत्यराज से आप तीनों लोको के राजा है। आपके यहां पर सभी अमूल्य रत्न सुशोभित है। इस कारण आपके पास ऐसी दिव्य और आकर्षक नारी भी होनी चाहिए जो कि तीनों लोकों में सर्वसुन्दर है। यह वचन सुन कर शुम्भ ने अपना एक दूत माता अम्बे के पास भेजा और उस दूत से कहा कि तुम उस सुन्दरी से जाकर कहना कि शुम्भ तीनो लोको के राजा है और वह तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते हैं। यह सुन दूत माता अम्बे के पास गया और शुमभ द्वारा कहे गये वचन माता को सुना दिये। माता ने कहा मैं मानती हूं कि शुम्भ बलशाली है परन्तु मैं एक प्रण ले चुकी हूं कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करूंगी। यह सारी बाते दूत ने शुम्भ को बताई तो वह माता के वचन सुन क्रोधित हो गया। तभी उसने द्रुमलोचन सेनापति को सेना लेकर माता के पास उन्हे लाने भेजा। जब उसके सेनापति ने माता को कहा कि हमारे साथ चलो हमारे स्वामी के पास नहीं तो तुम्हारे गर्व का नाश कर दूंगा। माता के बिना युद्ध किये जाने से मना किया तो उन्होंने मैया पर कई अस्त्र शस्त्र बरसाए पर माता को कोई हानि नहीं पहुंचा सके मैया ने भी बदले कई तीर बरसाए सेना पर और उनके सिंह ने भी कई असुरों का संहार कर दिया। अपनी सेना का यूँ संहार का सुनकर शुम्भ को क्रोध आया और चण्ड और मुण्ड नामक दो असुरो को भेजा,रक्तबीज के साथ और कहा कि उसके सिंह को मारकर माता को जीवित या मृत हमारे सामने लाओ। चण्ड और मुण्ड माता के पास गये और उन्हे अपने साथ चलने के लिए कहा। देवी के मना करने पर उन्होंने देवी पर प्रहार किया। तब देवी ने अपना महाकाली का रूप धारण कर लिया और असुरो के शीश काटकर अपनी मुण्डो की माला में परोए और सभी असुरी सेना के टुकड़े टुकड़े कर दिये। फिर जब माता महाकाली माता अम्बे के पास लौटी तो उन्होंने कहा कि आज से चामुंडा नाम तेरा हुआ विख्यात और घर घर में होवेगा तेरे नाम का जाप। बोलो सच्चिया ज्योतिया वाली माता तेरी सदा ही जय साचे दरबार की जय।


मालिनीथन का हिंदू मंदिर अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी तट पर स्थित शीर्ष स्थानों मे से एक है।

मालिनीथन का हिंदू मंदिर धार्मिक स्थल के लिए बहुत अच्छा स्थान है, यह मंदिर 550 ईस्वी पूर्व का है।

Religion and Social Concerns Caste Structure and the Empowerment of Women

Hinduism is one of the oldest and most diverse religious traditions in the world. Over the years, it has been deeply connected with social systems and cultural norms which have greatly impacted people’s lives for centuries. This paper will discuss two major social concerns that exist within Hindu society – caste system and women’s status. We will look at their historical background, development over time as well as current challenges faced by them; besides we are going to touch upon attempts made towards changing these aspects taking into consideration insights from Hindu religious texts, historical records and contemporary discourses.

Caste System in Hindu Society: Historical Views and Modern ChallengesThe “varna vyavastha” or caste system is a hierarchical division of people into different groups based on their birth, occupation and social status . There are four main categories under this traditional varna system:

  • Brahmins (Priests): They belong to highest varna who perform priestly duties such as conducting rituals, studying scriptures etc.
  • Kshatriyas (Warriors): This class includes warriors responsible for protecting society against external aggression and ruling kingdoms internally.
  • Vaishyas (Merchants): Members of business community engaged mainly in wealth creation through trade activities like agriculture among others.
  • Shudras (Servants): Labourers performing manual tasks considered inferior by other higher castes; they serve those above them.

अनंतपद्मनाभस्वामी मंदिर भारत के केरल के कासरगोड जिले के मंजेश्वरम तालुक के कुंबला शहर के पास एक हिंदू मंदिर है।

यह केरल का एकमात्र झील मंदिर है जो अनंतपद्मनाभ स्वामी तिरुवनंतपुरम की मूल सीट मणि जाती है। 

Sikh Religions Meaning, Customs, and Identity of the Turban

Millions of Sikhs around the world see the turban as a symbol of faith, identity and pride, and this is why it occupies such an important niche in Sikh religion. The significance of the turban in Sikhism is examined comprehensively in this paper to show its rich cultural and religious implications by following its history, symbolism, and changing role in Sikh identity. From when it was traditionalized among Sikhs through to how people perceive it now, it epitomizes the values of equality, bravery and religiousness cherished by these believers.

Historical Origins of the Turban in Sikhism:The tradition of wearing turbans dates back centuries and has deep roots in South Asian culture and tradition. In Sikhism, the significance attached to the turban has historic links to Guru Nanak Dev Ji, who was responsible for starting this religion on earth till his successors came along. It served as a practical head cover against extreme elements but also represented royalty, dignity and spiritual power at large.

  • Guru Nanak Dev Ji and the Turban: It was Guru Nanak Dev Ji who established a precedent for wearing a turban as an integral part of Sikh identity. He always wore a turban as long as he lived, which became a lesson to his disciples and an indication that Sikhs must have their own distinct appearance. Therefore, a turban is another way of expressing Guru Nanak Dev Ji’s teachings on equality, humbleness and faithfulness to one God.
  • Evolution of Turban Styles: The style and design of the turban has varied with time reflecting different regions or cultures as well as an individual preference. Different Sikh communities have developed their own unique styles of turbans each having its own method of tying it, colour combination and significance. Depending on various regions in Punjab, India and other Sikh communities in the world there are different styles of turbans hence showing diversity and richness within Sikh heritage.

Bhagavad Gita, Chapter 2, Verse 29

"Āśhcharya-vat paśhyati kaśhchid enam
Āśhcharya-vadvadati tathaiva chānyaḥ
Āśhcharya-vach chainam anyaḥ śhrinoti
Shrutvāpyenaṁ veda na chaiva kaśhchit"

Translation in English:

"Some look upon the soul as amazing, some describe it as amazing, and some hear of it as amazing, while others, even on hearing, cannot understand it at all."

Meaning in Hindi:

"कुछ लोग इस आत्मा को अद्वितीय मानते हैं, कुछ इसे अद्वितीय कहते हैं और कुछ इसे अद्वितीय सुनते हैं, जबकि कुछ लोग, इसे सुनकर भी, इसे समझ नहीं पाते हैं।"

विरुपाक्ष मंदिर कर्नाटक राज्य के हम्पी में तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित एक पवित्र स्थान और ऐतिहासिक स्थल है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब रावण शिव द्वारा दिए गए शिवलिंग को लेकर लंका जा रहा था, तब वह यहीं रुका था।