काली बाड़ी मंदिर दिल्ली के बिड़ला मंदिर के निकट स्थित एक हिन्दू बंगाली समुदाय का मन्दिर है।

मंदिर में देवी काली की मूर्ति कोलकाता के बड़े प्रधान कालीघाट काली मंदिर की प्रतिमा से मिलती जुलती बनाई गई है।

काली बाड़ी मंदिर दिल्ली के बिड़ला मंदिर के निकट स्थित एक हिन्दू बंगाली समुदाय का मन्दिर है। यह छोटा-सा मंदिर काली मां को समर्पित है। नवरात्रि के दौरान यहां भव्य समारोह आयोजित किया जाता है। काली मां को देवी दुर्गा का ही रौद्र रूप माना जाता है। इस मंदिर में देवी को शराब का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। काली बाड़ी मंदिर दिखने में छोटा और साधारण अवश्य है लेकिन इसकी मान्यता बहुत अधिक है। मंदिर के अंदर ही एक विशाल पीपल का पेड़ है। भक्तगण इस पेड को पवित्र मानते हैं और इस पर लाल धागा बांध कर मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना करते हैं। मंदिर में देवी काली की मूर्ति कोलकाता के बड़े प्रधान कालीघाट काली मंदिर की प्रतिमा से मिलती जुलती बनाई गई है।



मंदिर की समिति को १९३५ में सुभाष चंद्र बोस ने औपचारिक रूप दिया था, और प्रथम मंदिर भवन का उद्घाटन सर जस्टिस मनमाथा नाथ मुखर्जी के कर-कमलों से हुआ था। इसके बाद समिति ने आगंतुकों के लिए एक अन्य इमारत की स्थापना भी की। बंगाली पर्यटकों को यहां रहने के लिए कमरे व छात्रावास की सुविधा भी उपलब्ध है। यहां एक पुराना और समृद्ध पुस्तकालय भी है। यहां मनाया जाने वाला दुर्गा पूजा का उत्सव, दिल्ली शहर की सबसे पुरानी दुर्गा पूजाओं में गिना जाता है। यहां पहली बार १९२५ में दुर्गा पूजा की गई थी। इस काली बारी का मूल मंदिर बांग्ला साहिब मार्ग पर स्थित था और वहां तब स्थानीय बंगाली समुदाय प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा के लिए एकत्रित हुआ करते थे।


१९३१ में इस मंदिर को वर्तमान मंदिर के स्थान पर स्थानांतरित किया गया था। तब से आज तक यह दिल्ली में सैकड़ों पूजा समितियों के लिए सम्पर्क एवं केन्द्र बिंदु बना हुआ है, और दिल्ली के बंगाली समुदाय में व्यापक रूप से प्रतिष्ठा पाता है। दिल्ली में दुर्गा पूजा १९१० कश्मीरी गेट में आरम्भ हुई थी जो दिल्ली दुर्गा पूजा समिति द्वारा आयोजित की गई थी। तदोपरांत तिमारपुर में तिमारपुर दुर्गा पूजा समिति और सिविल लाइन्स में सिविल लाइंस पूजा समितियों द्वारा १९१४ में आयोजित की गई थी। यहां की काली बाड़ी में दुर्गा पूजा उत्सव आज भी परंपरागत शैली में आयोजित किया जाता है, जिसमें परंपरागत एकचालदार ठाकुर और शिलाल काज शामिल हैं।

यहां के पूजा अनुष्ठान में १९३६ से आज तक कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। पारंपरिक प्रतियोगिताओं रवींद्र संगीत और पाठ भी अभी भी आयोजित किये जाते हैं। कारीगरों को पूजा मंडल बनाने के लिए कोलकाता से बुलवाया जाता है। यह मन्दिर नई दिल्ली के मन्दिर मार्ग पर प्रसिद्ध बिड़ला मन्दिर के निकट ही स्थित है। यह कनाट प्लेस के पश्चिम में लगभग २ किलोमीटर पर स्थित है। निकटतम दिल्ली मेट्रो स्टेशन है रामकृष्ण आश्रम मार्ग, दिल्ली। कालीबाड़ी के बराबर में ही लद्दाख बौद्ध विहार भी स्थित है। निकटवर्ती क्षेत्रों में गोल मार्किट, काली बाड़ी मार्ग, डॉ.राम मनोहर लोहिया अस्पताल, रानी झांसी मार्ग, झण्डेवालान, आदि हैं।


पानीपत में देवी मंदिर

देवी मंदिर पानीपत शहर, हरियाणा, भारत में स्थित है। देवी मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है। मंदिर पानीपत शहर में बहुत प्रमुख है और बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है। मंदिर सूखे के तालाब के किनारे स्थित है और सूखे के तालाब को एक पार्क में बदल दिया गया था जहां बच्चे और वरिष्ठ नागरिक सुबह और शाम की सैर के लिए आते हैं।

शीतला माता मंदिर: यहीं आगमकुआं में सम्राट अशोक के भाई जिनकी हत्या हो गई थी, उन के शवों को डाला था।

पटना के ऐतिहासिक माता शीतला के मंदिर का अपना ही महत्व है। मंदिर के प्रांगण में अगमकुआ है जिसमें सम्राट अशोक ने अपने भाइयों की हत्या करके उनके शवों को रखा था।

क्यों मनाया जाता है ईद उल जुहा (बकरीद का त्योहार) क्यों होता है कुर्बानी का मतलब

इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों का प्रमुख त्योहार माना जाता है-ईद उल जुहा, जो रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों के बाद मनाया जाता है।

The Islamic Concept of "Tawakkul" (Belief in God)

Amongst the interwoven threads of Islamic mysticism, ‘Tawakkul’ has been given an important place. This Arabic word may be translated as ‘trust in God’ or ‘reliance on God’. It constitutes one of the most basic features in the relationship between a believer and Allah (SWT). Tawakkul finds its roots deep within the Quranic teachings, prophetic sayings, and Islamic ethical tradition. The goal of this discourse is to shed light upon various aspects of tawakkul, its theological significance within Islam, practical demonstrations as well as impact on Muslims’ lives.

Speaking tawakkul means putting all your trust in Allah. The term itself comes from the Arabic language where “wakala” means entrustment or dependence upon another person. In other words, it implies that we should leave everything up to Him firmly believing that He alone can provide for us; keep us safe from harm’s way; and show us what path we are supposed to take next among many other things related to guidance or sustenance. This confidence rests upon our unshakeable faith in His knowledge, mercy, and power because there is no other deity but Him.