सिक्ख धर्म के सातवें गुरु हर राय जी का प्रकाश पर्व

गुरु हर राय जी के दादा का नाम गुरु हरगोबिंद जी सिंह था, जो एक महान योद्धा थे जिन्होंने मुगलों के उत्पीड़न का विरोध किया था।

गुरु हर राय का जन्म 16 या 31 जनवरी 1630 को पंजाब के किरतपुर साहिब में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबा गुरदिता जी था जो सिखों के छठे गुरु के पुत्र थे। गुरु हर राय की माता का नाम निहाल कौरजी था। गुरु हर राय उनके पिता के छोटे पुत्र थे और उनके दादा का नाम गुरु हरगोबिंद जी सिंह था। गुरु हरगोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा थे जिन्होंने मुगलों के उत्पीड़न का विरोध किया था।



गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने अपना शरीर छोड़ने से पहले ही 14 साल की छोटी उम्र में 3 मार्च 1644 को अपने पोते हर रायजी को 'सातवें नानक' के रूप में स्थापित कर दिया था। वे 6 अक्टूबर 1661 तक इस पद पर रहे। इस दौरान उन्होंने अपने दादा गुरु हरगोबिंद साहिबजी के सिख योद्धाओं की टीम का पुनर्गठन किया।


गुरु हर राय साहिब जी का विवाह संवत 1697 में उत्तर प्रदेश के अनूप नगर निवासी श्रीदयाराम जी की पुत्री किशन कौरजी से हुआ था। गुरु हर राय साहिबजी के दो बेटे थे राम रायजी, हरकिशन साहिबजी (गुरु)। कहा जाता है कि गुरु हर रायजी ने विद्रोह में मुगल बादशाह औरंगजेब के भाई दारा शिकोह की मदद की थी।

जब औरंगजेब ने मामले को समझाने के लिए हर रायजी को बुलाया, तो हर राय ने अपने बेटे बाबा राम रायजी को प्रतिनिधि के रूप में भेजा था। वहां बाबा राम रायजी ने अपने पिता की ओर से सफाई दी। किसी कारणवश गुरु हर राय ने अपने पुत्र बाबा राम राय को अपना उत्तराधिकारी बनाने के बजाय अपने दूसरे पुत्र हरिकिशनजी को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। गुरु हर रायजी ने 20 अक्टूबर 1661 ई. को रूपनगर में अपना शरीर त्याग दिया।


Bhagavad Gita, Chapter 2, Verse 10

तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः॥

Translation (English):
Lord Krishna, with a smile on his face, then spoke these words to the despondent Arjuna, who was overcome with pity in the midst of both armies.

Meaning (Hindi):
तब हृषीकेश श्रीकृष्ण जो दोनों सेनाओं के बीच विषाद कर रहे अर्जुन को देख उसके मुख पर हंसी लिए यह वचन बोले॥

ज्वालामुखी मंदिर हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में नेकेड खड्ड के तट पर कसेटी नाम का एक छोटा सा गांव स्थित है।

जय बाबा धुंन्धेशवर महादेव, कांगडा जिसका संबंध भी शिव की एक दिव्य शक्ति से है। 

Bhagavad Gita, Chapter 2, Verse 21

"Vedāvināśhinaṁ nityaṁ ya enam ajam avyayam
Kathaṁ sa puruṣhaḥ pārtha kaṁ ghātayati hanti kam"

Translation in English:

"O Partha, how can a person who knows that the soul is indestructible, eternal, unborn, and immutable, kill anyone or cause anyone to be killed?"

Meaning in Hindi:

"हे पार्थ, जो जानता है कि आत्मा अविनाशी, नित्य, अजन्मा और अविनाशी है, वह किसी को मारता है या किसी को मारवाता है, ऐसा कैसे हो सकता है?"

Christian Outreach and Mission in the Spread of Love and Hope

Christian mission and outreach is the spirit of Christianity, epitomizing Jesus Christ’s commandment to go ye into all the world, and preach the Gospel to every creature (Mark 16:15). In this article, we will consider evangelism’s meaning, listen to inspiring stories of Christian missionaries and explore how Christians engage in acts of charity and humanity based on Christian teachings.

Importance of Outreach:Evangelism lies at the heart of missions for Christians because it reflects a burning desire to share God’s liberating love with others. Rooted in commissioning Jesus’ disciples, evangelism is obedience motivated by love; as every person is valuable before God so they deserve a chance of tasting His mercy. Personal testimonies, door-knocking campaigns, mass crusades are some of ways Christians use to touch lives with the transforming power of gospel that leads them to relationship with Jesus Christ.