भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के कुशीनगर ज़िले में स्थित एक नगर है, जहाँ खुदाई के दौरान यहां भगवान बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा मिली थी।

कुशीनगर स्थल भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के रूप में भी जाना जाता है और कहा जाता है कि यहीं पर भगवान बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश दिया था।

कुशीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग 28 पर गोरखपुर से लगभग 53 किमी पूर्व में स्थित है। कुशीनगर से 20 किमी पूरब की ओर जाने पर बिहार राज्य आरम्भ हो जाता है। यहाँ कई देशोंं के अनेक सुन्दर बौद्ध मन्दिर हैं। इस कारण से यह एक अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल भी है जहाँ विश्व भर के बौद्ध तीर्थयात्री भ्रमण के लिये आते हैं। यहाँ बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बुद्ध इण्टरमडिएट कालेज, प्रबुद्ध सोसाइटी,भिक्षु संघ, एक्युप्रेशर परिषद्, चन्दमणि निःशुल्क पाठशाला, महर्षि अरविन्द विद्या मंदिर तथा कई छोटे-छोटे विद्यालय भी हैं। कुशीनगर के आस-पास का क्षेत्र मुख्यतः कृषि-प्रधान है। जन-सामन्य की बोली भोजपुरी है। यहाँ गेहूँ, धान, गन्ना आदि मुख्य फसलें पैदा होतीं हैं। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कुशीनगर में एक माह का मेला लगता है। यहाँ प्रत्येक बर्ष 10 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, मिलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन भिक्षु संघ, एकयुप़ेशर काउंसिल एवं प्रबुद्ध सोसाइटी द्वारा किया जाता है । यह तीर्थ महात्मा बुद्ध से सम्बन्धित है, किन्तु आस-पास का क्षेत्र हिन्दू बहुल है। यहाँ के काकार्यक्रम में आस-पास की जनता पूर्ण श्रद्धा से भाग लेती है और विभिन्न मन्दिरों में पूजा-अर्चना एवं दर्शन करती है। किसी को संदेह नहीं कि बुद्ध उनके 'भगवान' हैं।



धार्मिक व ऐतिहासिक परिचय
कुशीनगर का इतिहास अत्यन्त ही प्राचीन व गौरवशाली है। इसी स्थान पर महात्मा बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था। प्राचीन काल में यह नगर सैथवारमल्ल वंश की राजधानी तथा 16 महाजनपदों में एक था। चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहियान के यात्रा वृत्तातों में भी इस प्राचीन नगर का उल्लेख मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह स्थान त्रेता युग में भी आबाद था और यहां मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी थी जिसके चलते इसे 'कुशावती' नाम से जाना गया। पालि साहित्य के ग्रंथ त्रिपिटक के अनुसार बौद्ध काल में यह स्थान सोलह महाजनपदों में से एक था। मल्ल राजाओं की यह राजधानी तब 'कुशीनारा' के नाम से जानी जाती थी। ईसापूर्व पांचवी शताब्दी के अन्त तक या छठी शताब्दी की शुरूआत में यहां भगवान बुद्ध का आगमन हुआ था। कुशीनगर में ही उन्होंने अपना अंतिम उपदेश देने के बाद महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया था।


इस प्राचीन स्थान को प्रकाश में लाने के श्रेय जनरल ए कनिंघम और ए. सी. एल. कार्लाइल को जाता है जिन्होंनें 1861 में इस स्थान की खुदाई करवाई। खुदाई में छठी शताब्दी की बनी भगवान बुद्ध की लेटी प्रतिमा मिली थी। इसके अलावा रामाभार स्तूप और और माथाकुंवर मंदिर भी खोजे गए थे। 1904 से 1912 के बीच इस स्थान के प्राचीन महत्व को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने अनेक स्थानों पर खुदाई करवाई। प्राचीन काल के अनेक मंदिरों और मठों को यहां देखा जा सकता है। कुशीनगर के करीब फाजिलनगर कस्बा है जहां के 'छठियांव' नामक गांव में किसी ने महात्मा बुद्ध को सूअर का कच्चा मांस खिला दिया था जिसके कारण उन्हें दस्त की बीमारी शुरू हुई और मल्लों की राजधानी कुशीनगर तक जाते-जाते वे निर्वाण को प्राप्त हुए। फाजिलनगर में आज भी कई टीले हैं जहां गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग की ओर से कुछ खुदाई का काम कराया गया है और अनेक प्राचीन वस्तुएं प्राप्त हुई हैं। फाजिलनगर के पास ग्राम जोगिया जनूबी पट्टी में भी एक अति प्राचीन मंदिर के अवशेष हैं जहां बुद्ध की अतिप्रचीन मूर्ति खंडित अवस्था में पड़ी है। गांव वाले इस मूर्ति को 'जोगीर बाबा' कहते हैं। संभवत: जोगीर बाबा के नाम पर इस गांव का नाम जोगिया पड़ा है। जोगिया गांव के कुछ जुझारू लोग `लोकरंग सांस्कृतिक समिति´ के नाम से जोगीर बाबा के स्थान के पास प्रतिवर्ष मई माह में `लोकरंग´ कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिसमें देश के महत्वपूर्ण साहित्यकार एवं सैकड़ों लोक कलाकार सम्मिलित होते हैं।

कुशीनगर से 16 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में मल्लों का एक और गणराज्य पावा था। यहाँ बौद्ध धर्म के समानांतर ही जैन धर्म का प्रभाव था। माना जाता है कि जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ( जो बुद्ध के समकालीन थे) ने पावानगर (वर्तमान में फाजिलनगर ) में ही परिनिर्वाण प्राप्त किया था। इन दो धर्मों के अलावा प्राचीन काल से ही यह स्थल हिंदू धर्मावलंम्बियों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। गुप्तकाल के तमाम भग्नावशेष आज भी जिले में बिखरे पड़े हैं। लगभग डेढ़ दर्जन प्राचीन टीले हैं जिसे पुरातात्विक महत्व का मानते हुए पुरातत्व विभाग ने संरक्षित घोषित कर रखा है। उत्तर भारत का इकलौता सूर्य मंदिर भी इसी जिले के तुर्कपट्टी में स्थित है। भगवान सूर्य की प्रतिमा यहां खुदाई के दौरान ही मिली थी जो गुप्तकालीन मानी जाती है। इसके अलावा भी जनपद के विभिन्न हिस्सों में अक्सर ही जमीन के नीचे से पुरातन निर्माण व अन्य अवशेष मिलते ही रहते हैं। कुशीनगर जनपद का जिला मुख्यालय पडरौना है जिसके नामकरण के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि भगवान राम के विवाह के उपरान्त पत्नी सीता व अन्य सगे-संबंधियों के साथ इसी रास्ते जनकपुर से अयोध्या लौटे थे। उनके पैरों से रमित धरती पहले पदरामा और बाद में पडरौना के नाम से जानी गई। जनकपुर से अयोध्या लौटने के लिए भगवान राम और उनके साथियों ने पडरौना से 10 किलोमीटर पूरब से होकर बह रही बांसी नदी को पार किया था। आज भी बांसी नदी के इस स्थान को 'रामघाट' के नाम से जाना जाता है। हर साल यहां भव्य मेला लगता है जहां उत्तर प्रदेश और बिहार के लाखों श्रद्धालु आते हैं। बांसी नदी के इस घाट को स्थानीय लोग इतना महत्व देते हैं कि 'सौ काशी न एक बांसी' की कहावत ही बन गई है। मुगल काल में भी यह जनपद अपनी खास पहचान रखता था।


Ancient Indian Warriors Martial Arts and Military Traditions Revealed

The tales, legends, and historical records of old India never fail to mention how good the Kshatriyas were in warfare. The warrior class of ancient India was truly skilled not only in combat but also had a great knowledge of war methods and tactics as well as weapons. In this article, therefore we will explore the weapons used during their time, training methods they employed and strategies for fighting on battlefield that are described by classics like Dhanurveda.

Kshatriyas’ Role in Ancient India:In ancient Indian society, the Kshatriyas held a special place as defenders or rulers who protected people from external threats while ensuring justice prevails within the state through might. They were trained rigorously since childhood which made them physically tough leaders capable of handling any kind military challenge thrown at them.

Weapons used by Kshatriyas:

Swords and Blades: The Khanda was one among many types of swords known to be used by these warriors; others include Katara which is straight bladed weapon with single edge or sometimes two edges designed for thrusting attacks only. Cuts could also be made using this type of sword if necessary because it had sharp edges too

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अहोबिलम आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में पूर्वी घाट पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है जिसे गरुड़द्री पहाड़ी के नाम से जाना जाता है।

यह स्थान पांच किलोमीटर के दायरे में स्थित भगवान नरसिंह के नौ मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।

Taking care of Raising Awareness of Mental Health Adaptability and Compassion

Online Worship: Many Hindus now use­ tech for worship. They can now see­ their gods, pray, and watch rituals online.  This doesnt re­place temples, but it he­lps. It makes religion easy to acce­ss from home, or when they cant visit a te­mple.Respect for Nature­: Hindus have always respecte­d nature. Their belie­fs teach them to care for all life­. They plant trees, cle­an rivers, and host green fe­stivals. These acts show their love­ for the environment and he­lp keep nature in balance­.

Religious Talks: Hinduism e­mbraces all faiths, pushing for interfaith talks. This helps to grow unde­rstanding between diffe­rent religious groups. Hindus have re­spectful discussions with other religions. This he­lps society stick together be­tter.Fitness and Inner Pe­ace: Yoga, which started from ancient Hindu ide­as, is loved worldwide. Its for well-be­ing in both mind and body. Hindus dont just see Yoga as a workout but as a spiritual routine too. Yoga is about good he­alth, clear thinking and a kickstart for the spirit. It helps bring out true­ peace from within. A key point in Hindu we­llness.